GST in India – The practical nature

भारत में गुड्स एवं सर्विस टैक्स – व्यावहारिक प्रकृति

जी.एस.टी. संविधान संशोधन विधेयक अब राज्यसभा से भी पारित हो गया है और यह लोकसभा से पहले ही पारित हो गया था . इसके बाद इसे राज्यों की विधानसभाओं में रखा जाएगा जहाँ कम से कम आधे राज्यों में यह साधारण बहुमत से अनुमोदित होना जरुरी है इसके बाद ही यह राष्ट्रपति महोदय के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा और सरकार को जी.एस.टी. लगाने की शक्तियां भारतीय संविधान के द्वारा प्राप्त हो जायेगी.

इसके बाद केंद्र एवं राज्यों के द्वारा जी.एस.टी. कानून बनाए जायेंगे तब ही जी.एस.टी. पूरे भारत में लागू हो पायेगा. यहाँ यह ध्यान रखें कि भारत में लगने वाला जी.एस.टी. कानून एक “दोहरा कर” है, जिसे पता नहीं किन कारणों से “एकल कर या सिंगल” कर के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, इसका एक भाग अर्थात सी.जी.एस.टी. केंद्र सरकार के अधीन होगा और दूसरा भाग अर्थात एस.जी.एस.टी. राज्य सरकार के अधीन होगा इसलिए केंद्र एवं देश की प्रत्येक विधान सभा को अपना –अपना अलग कानून पारित करना होगा. राज्यों के वित्त मंत्रियों की सलाहकार समिति ने जी.एस.टी. के आदर्श कानून का एक प्रारूप जारी किया है और जहाँ तक उम्मीद है केंद्र एवं राज्य इस प्रारूप पर विभिन्न वर्गों से मिलने वाले सुझावों के बाद एक अंतिम प्रारूप जारी करेंगे जिसके आधार पर केंद्र एवं राज्य अपने कानून बनायंगे.

भारत में लगने वाले जी.एसटी.के बारे में अभी भी कई भ्रांतियां आम उपभोक्ता एवं कर दाता के मन में है जो कि हमें कई जगह सुनने को मिलता है जैसे अब कर एक ही जगह लगेगा, वेट तो अब समाप्त हो जाएगा और राज्य भी कोई कर नहीं लगा पाएंगे इत्यादि – इत्यादि. ये सभी भ्रांतियां है जिनका निवारण इसलिए भी होना आवश्यक है कि अब आगे – पीछे जी.एस.टी. तो लगना ही है.

आइये समझे कि क्या स्वरुप होगा भारत में लगने वाले जी.एस.टी. का और किस तरह करदाता इसका पालन करेंगे और इसका क्या प्रभाव पडेगा भारतीय उपभोक्ताओं पर:-

1. भारत में लगने वाला जी.एस.टी. एक दोहरा कर है

जी.एस.टी. के बारे में आम धारणा यह है कि यह एक “एकल कर” है एवं सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष करों की जगह अब व्यापार एवं उद्योग जगत को सिर्फ एक ही कर का भुगतान करना होगा और यही जी.एस.टी. का आदर्श स्वरूप भी है जिसके तहत केंद्र सरकार को एक ही जगह सारा कर एकत्र करने के बाद उसे केंद्र एवं राज्यों के बीच बांटना था .

लेकिन जैसा कि ऊपर भी लिखा जा चुका है राज्य अपना कर लगाने का अधिकार नहीं छोड़ना चाहते थे इसलिए राज्यों और केंद्र के बीच एक समझोता हुआ जिसके तहत बिक्री एवं सेवा के एक ही व्यवहार पर राज्य एवं केंद्र दोनों अलग – अलग कर वसूल करेंगे जो कि राज्यों के जी.एस.टी. अर्थात “एस.जी.एस.टी.” एवं केन्द्रीय सरकार का जी.एस.टी. अर्थात “सी.जी.एस.टी.” के रूप में जाने जायंगे इसके अतिरिक्त माल के साथ सेवाओं पर भी कर लेने का अधिकार राज्यों को भी मिल जाएगा.

आइये इसे एक उदाहरण के जरिये समझने की कोशिश करें-

जयपुर का एक व्यापारी “अ” जयपुर के ही एक दूसरे व्यापारी “ब” को कोई माल 10 लाख रुपये में बेचता है और मान लीजिये कि राज्यों के जी.एस.टी. की दर 8 प्रतिशत है एवं केंद्र के जी.एस.टी. की दर 10 प्रतिशत रहती है इसा प्रकार जी.एस.टी. की कुल दर 18 प्रतिशत हुई जैसा कि प्रचारित भी किया जा रहा है तो “अ” इस व्यवहार में 80000.00 रुपये एस.जी.एस.टी. (राज्य का जी.एस.टी.) एवं 1.00 लाख रुपये सी.जी.एस.टी. (केंद्र का जी.एस.टी.) के रूप में अपने खरीददार “ब” से वसूल करेगा.

आइये अब इस व्यवहार को और भी आगे ले जाए और देखे कि इसी माल को जयपुर का “ब” नामक व्यापारी अब राजस्थान के ही अन्य शहर जोधपुर के किसी अन्य शहर के व्यापरी “स” को 10.50 लाख रुपये में बेचता है तो वह 84000.00 रुपये एस.जी.एस.टी. एवं 1.05 लाख रुपये सी.जी.एस.टी. के रूप में वसूल करेगा .

यहाँ ध्यान रखे कि “ब” पहले से ही एस.जी.एस.टी. के रूप में अपना माल खरीदते हुए 80000.00 रूपये का भुगतान कर चुका है एवं सी.जी.एस.टी. के रूप में 1.00 लाख रुपये का भुगतान इसी प्रकार कर चुका है एवं इस प्रकार “ब” की इनपुट क्रेडिट एस.जी.एस.टी. के रूप में 80000.00 रुपये है एवं सी.जी.एस.टी. के रूप में इनपुट क्रेडिट 1.00 लाख रुपये है जिसे वह अपने द्वारा “स” से वसूल किये गए कर में घटा कर जमा करा देगा.

इस प्रकार “ब” एस.जी.एस.टी. के रूप में (रुपये 84000.00 – रुपये 80000.00 ) 4000.00 रुपये का भुगतान राज्य के खजाने में जमा कराएगा एवं इसी प्रकार से सी.जी.एस.टी. (रुपये 1.05लाख – रुपये 1.00 लाख ) 5000.00 रुपये केन्द्रीय सरकार के खजाने में जमा कराएगा.

इस पूरे व्यवहार को देंखे तो इससे केंद्र सरकार को 1.05 लाख रूपये का कर मिलेगा और और राज्य सरकार को 84000.00 रुपया कर को मिलेगा.

यहाँ यह ध्यान रखें कि राज्य के भीतर बिक्री करने पर भी केंद्र और राज्य दोनों को कर देना होगा और अब से व्यापारी एक ही बिल में “दो कर” जैसा कि ऊपर बताया गया है लगाएगा और यह आपके लिए एक आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य हो सकता है .

इस कर में माल एवं सेवाओं दोनों को शामिल किया जाएगा लेकिन एक ही व्यवहार पर जैसा कि ऊपर समझाया गया है केंद्र एवं राज्य दोनों ही कर लेंगे इसलिए भारत में लगने वाला यह “माल एवं सेवा कर” एक दोहरा कर है जिसे एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी.के नाम से जाना जाएगा.

2. वेट और जी.एस.टी.

हमारे देश में 2005 एवं 2006 में सभी राज्यों में वेट लागू किया गया था अब व्यवहारिक रूप से इसे समझें तो इसी वेट को जी.एस.टी. के तहत “राज्यों के जी.एस.टी.” अर्थात “एस.जी.एस.टी.” में परिवर्तित करते हुए इसमे माल के साथ – साथ सेवाओं को भी शामिल कर कर लिया जाएगा. वेट समाप्त नहीं होगा लेकिन इसका नाम बदल जाएगा और इसे अब एस.जी.एस.टी. के नाम से जाना जाएगा और यदि आप अगले पैरा में वर्णित सी.जी.एस.टी. को भी समझ लें तो आपको पता लगेगा कि एक ही बिल में अब एक और कर सी.जी.एस.टी. भी आपको एकत्र कर जमा करना होगा . व्यवहारिक रूप से राज्यों में लगने वाले सभी अप्रत्क्ष कर “एस.जी.एस.टी.” में समाहित हो जायेंगे.

हमारे देश में अब सभी राज्यों में वेट लागू है इसलिए प्रक्रियात्मक स्वरूप से समझे तो राज्य सरकारों को जी.एस.टी. लागू करने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.

3. केन्द्रीय उत्पाद शुल्क- सेन्ट्रल एक्साइज और जी.एस.टी.

केन्द्रीय उत्पाद शुल्क भारत में सरकारी राजस्व का एक बहुत बड़ा हिस्सा है एवं यह एक ऐसा अप्रत्यक्ष कर है जिसे केन्द्रीय सरकार वसूल करती है. यह कर वस्तु के निर्माता की अवस्था पर लगता है . यह कर “सी.जी.एस.टी.” अर्थात केन्द्रीय जी.एस.टी. में समाहित हो जाएगा. लेकिन यहाँ यह ध्यान रखे कि केन्द्रीय उत्पाद शुल्क वस्तु की निर्माण की अवस्था तक ही लगता है जब कि सी.जी.एस.टी. वस्तु की बिक्री की अवस्था तक लगना है इसलिए संवैधानिक संशोधन के जरिये पहले केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि वह माल की बिक्री पर भी कर लगा सके.

अब यह आप ध्यान रखें सभी वेट डीलर्स को एस.जी.एस.टी. के साथ – साथ केंद्र का जी.एस.टी. अर्थात “सी.जी.एस.टी.” भी भरना होगा भले ही बिक्री राज्य के भीतर ही क्यों नहीं हो इसके अतिरिक्त सेवाओं पर भी यही नियम लागू होगा.

four. न्यूनत्तम राशि जहाँ से जी.एस.टी. लगना है:- थ्रेशहोल्ड लिमिट

बिक्री या सेवा की वह न्यूनत्तम राशि जहाँ से जी.एस.टी. के तहत कर लगना है वह राशि केंद्र एवं राज्यों को तय करनी है और अभी तक जो समाचार आ रहें है उनके अनुसार यह राशि केवल 10.00 लाख रुपये होगी लेकिन हो सकता है अंतिम समय में इसे बढ़ा कर 15 या 20 लाख किया जा सकता है . इस राशि को ही “थ्रेशहोल्ड लिमिट” कहा जाता है. देखिये इस समय अधिकांश राज्यों में यह सीमा वेट के लिए 10.00 लाख रुपये है लेकिन कुछ राज्यों में अभी भी यह सीमा 5.00 लाख रुपये है . सेवा कर के लिए भी छोटे सेवा प्रदाताओ के लिए यह सीमा इस समय 10 लाख रुपये है .

लेकिन असली समस्या तो केन्द्रीय उत्पाद शुल्क को लेकर है जहां यह सीमा 150 लाख रुपये है लेकिन सी.जी.एस.टी. के तहत यह सीमा भी अब 10 लाख ( 15 लाख रूपये 20 लाख रुपये अंतिम समय में जैसा भी तय हो ) रुपये प्रस्तावित है .

केन्द्रीय उत्पाद शुल्क की जगह जो नया कर जी.एस.टी. के तहत “सी.जी.एस.टी.” के नाम से लाया जा रहा है उसमे यह कहा जाता रहा है केंद्र राज्यों के मुकाबले वित्तीय रूप से और भी मजबूत हो जाएगा उसका सबसे बड़ा कारण एक तो यह “थ्रेशहोल्ड लिमिट” एवं दूसरा यह तथ्य है कि अब केंद्र माल के निर्माण की अवस्था की जगह बिक्री की अवस्था पर प्रत्यक्ष कर के रूप में सी.जी.एस.टी. की वसूली करेगा.

यहाँ यह ध्यान रखे कि देश के बहुत से लघुउद्योग अभी भी इसी one hundred fifty लाख रूपये के केन्द्रीय उत्पाद कर के सरंक्षण के कारण अपना एक स्वयं का बाज़ार स्थानीय स्तर पर खडा किये हुए है लेकिन जी.एस.टी. के दौरान यह सरंक्षण समाप्त होने के कारण उन्हें भी बड़े उद्योगों के बराबर ही कर देना होगा. “एक कर एक बाजार” की यह सोच जिसके तहत जी.एस.टी. लगाया जा रहा है वह इन लघु उद्योगों के लिए संकट का कारण बन सकती है और बड़े उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा में उन्हें अपना अस्तित्व बचाए रख पाना कुछ मुश्किल जरुर होगा.

5. जी.एस.टी. एवं केन्द्रीय बिक्री कर (सी.एस.टी.)

जब वर्ष 2006 में राज्यों में वेट लागू किया गया था तब केन्द्रीय बिक्री कर अर्थात सी.एस.टी. को सबसे बड़ी बाधा माना गया था और यह वादा किया गया था कि प्रत्येक वर्ष एक प्रतिशत से इस दर को गिराकर अंत में इस कर को समाप्त कर दिया जाएगा लेकिन यह वादा पूरा नहीं किया गया और आज भी यह दर दो प्रतिशत पर कायम है और इसके साथ ही केन्द्रीय बिक्री कर पर एकत्र किये जाने वाले सी- फॉर्म की समस्या से पूरा ही व्यापार एवं उद्योग जगत परेशान है .

आइये पहले समझ ले कि केन्द्रीय बिक्री कर क्या है क्यों कि आम तौर पर इसका नाम यह संकेत देता है कि यह केंद्र सरकार द्वारा लगाया गया एक कर है जब कि सच्चाई यह है कि यह बिक्री करने वाले राज्य द्वारा दो राज्यों के मध्य होने वाले व्यापार पर वसूल किया जाने वाला कर है और देश के विकसित राज्य जिन्हें हम निर्माता राज्य भी कह सकते है इस कर से काफी राजस्व एकत्र करते है .

जी.एस.टी. एक अंतिम बिंदु पर अंतिम उपभोक्ता पर लगने वाला कर है अत; केन्द्रीय बिक्री कर का इसमे कोई स्थान नही होगा और इससे विकसित राज्यों अर्थात बिक्री करने वाले राज्यों के राजस्व पर भी नकारात्मक प्रभाव पडेगा जिसके बारे में भी केंद्र को इन राज्यों को राजस्व हानि की भरपाई करनी पड़ेगी.

6. जी.एस.टी. का आई.जी.एस.टी. मॉडल

दो राज्यों के मध्य होने वाले व्यापार पर निगरानी रखने के लिए एक आई.जी.एस.टी. मॉडल भी तैयार कर प्रस्त्तावित किया गया है जिसकी चर्चा हम आगे कर रहे है लेकिन यह ध्यान रखे

कि यह केन्द्रीय बिक्री कर के स्थान पर लगने वाला कोई नया कर (एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. के अतिरिक्त तीसरा कर) नहीं है बल्कि एक ऐसा तंत्र है जिसके जरिये दो राज्यों के बीच हुए व्यापार पर नजर रखी जा सके एवं यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि कर उस राज्य को मिले जहाँ अंतिम उपभोक्ता निवास करता है .

जी.एस.टी. के तहत सूचना तकनीकी की सहायता से एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाएगा जिससे दो राज्यों के मध्य माल एवं सेवा के अंतरप्रांतीय व्यापर पर निगरानी भी रखी जा सके एवं यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि “कर” अंतिम उपभोक्ता के राज्य को मिल रहा है.

यहाँ ऊपर पहले ही यह बताया जा चुका है कि यह केन्द्रीय बिक्री कर की जगह लगने वाला कोई नया कर नहीं है लेकिन यह “आई.जी.एस.टी.” भी उद्योग एवं व्यापार के लिए प्रक्रियात्मक उलझाने तो बढाने वाला ही है .

आइये देखे कि यह आई.जी.एस.टी. मॉडल किस तरह से काम करेगा :-

(अ). अंतरप्रांतीय व्यापर के दौरान बिक्री करने वाला डीलर अपने खरीददार से आई.जी.एस.टी. के रूप में एक कर एकत्र कर केन्द्रीय सरकार के खजाने में जमा कराएगा. इस कर की दर एस..जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. की दर को मिलाकर बनेगी. उदाहरण के लिए मान लीजिये कि एस.जी.एस.टी. की दर eight प्रतिशत है एवं सी.जी.एस.टी. की दर भी 10 प्रतिशत है तो आई.जी.एस.टी. के रूप में जमा कराया जाने वाला कर 18 प्रतिशत की दर से केंद्र सरकार के खजाने में जमा कराया जाएगा.

(i). अपना आई.जी.एस.टी. जमा कराते समय विक्रेता अपने द्वारा इस माल ,को जो कि उसने अंतरप्रांतीय बिक्री के दौरान बेचा है, की खरीद पर चुकाए गये एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. की इनपुट क्रेडिट लेगा.

(ii). विक्रेता का राज्य इस बिक्री किये गए माल के सम्बन्ध में विक्रेता ने जो विक्रेता राज्य में भुगतान किये गए एस.जी.एस.टी. की क्रेडिट ली है उतनी राशि केंद्र सरकार के खजाने में हस्तांतरित कर देगा.

(iii). अंतरप्रांतीय बिक्री के दौरान खरीद करने वाला क्रेता जब भी यह माल बेचेगा तो अपनी एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. की राशि में से अपने द्वारा चुकाए गई आई.जी.एस.टी. की राशी को कम कर लेगा एवं शेष राशि ही एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. के रूप में चुकाएगा.

(iv). जितनी राशि की इनपुट क्रेडिट अपनी एस.जी.एस.टी. चुकाते समय उपभोक्ता राज्य का व्यापारी आई.जी.एस.टी. में से लेगा उतनी रकम केंद्र उपभोक्ता राज्य के खाते में हस्तांतरित कर देगा.

इस प्रकार एस.जी.एस.टी. के रूप में मिलने वाला पूरा राजस्व अंतरप्रांतीय व्यापर के दौरान भी उपभोक्ता राज्य को ही मिल जाएगा.

7. जी.एस.टी. एवं कर की दर

जी.एस.टी. के दौरान कर की दर क्या होगी यह भी एक बहुत बड़ा मुद्दा रहा है क्यों कि सरकार यह चाहती है कि उसे एवं राज्यों को जी.एस.टी. के दौरान अधिक कर या कम से कम उतना तो कर मिले जितना वर्तमान में लागू अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के दौरान लागू करों यथा वेट एवं केन्द्रीय उत्पाद शुल्क इत्यादि से मिल रहा है और ऐसी कोई दर निकालना बहुत ही मुश्किल है क्यों कि अभी जी.एस.टी. के दौरान कर मुक्त वस्तुए , जी.एस.टी. से बाहर वस्तुए इत्यादि तय करना बाकी है इसके अतिरिक्त सरकार कोई भी दर तय का ले वह उद्योग , व्यापार एवं उपभोक्ता के लिए अधिक ही होगी लेकिन इसके बाद भी सरकार को यथोचित राजस्व जिसकी उसे उम्मीद है मिल जाएगा ऐसा कोई जरुरी नहीं है.

इस समय जो ताजा समाचार आ रहे है उनके अनुसार एस.जी.एस.टी. की दर eight प्रतिशत एवं सी.जी.एस.टी. की दर 10 प्रतिशत पर विचार चल रहा है तो यह दर हुई 18 प्रतिशत जो कि पहले से अनुमानित कर की दर 27 प्रतिशत से काफी कम है. वित्त मंत्री महोदय कुछ 18% से कम दर की भी बात कर चुके है . इन सबसे एक बड़ा सवाल यह उठता था कि क्या भारतीय उपभोक्ता इतनी ऊँची दर पर कर को सहन भी कर पायेंगे कि नहीं और इसी सवाल के जवाब में भारत में जी.एस.टी. की सफलता छुपी हुई है . जी.एस.टी. एक अप्रत्यक्ष कर है और इसका अंतिम भार उपभोक्ता पर ही पढ़ना है .

लेकिन अब एक नया सवाल यह है कि क्या हमारे कानून निर्माताओं को जो राजस्व प्राप्ती की जो उम्मीद 27 प्रतिशत की दर से थी वही 18 प्रतिशत से भी पूरी हो जायेगी ? क्या एक बार 18 प्रतिशत की दर लागू करने के बाद वे इसे बढ़ा पाएंगे ? यहाँ यह ध्यान रखें कि सरकार सविधान संशोधन विधेयक में अधिकत्तम 18 प्रतिशत की दर रखने का प्रस्ताव ठुकरा चुकी है अत: अब वे अर्थात कानून निर्माता इस दर को एक बार जी.एस.टी. लागू करने के बाद नहीं बढ़ाएंगे इस सीमा से बंधे हुए नहीं है और यह जी.एस.टी. को लेकर सरकार की विश्वसनीयता पर भी एक सवाल है.

एक बात और है जिन देशों में जी.एस.टी. की दर 20 प्रतिशत या उससे अधिक है वहां की प्रति व्यक्ती आय 40000.00 डॉलर्स से भी अधिक है जब कि भारत में प्रति व्यक्ती आय केवल 1500.00 डॉलर्स प्रतिवर्ष ही है .

लेकिन यहाँ यह ध्यान रखे कि दर कोई भी हो वह विवादित ही रहेगी और समस्त विवादों के बाद भी सरकार को वांछित राजस्व मिल जाए यह अनिवार्य नहीं है.

8 . जी.एस.टी. एवं पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स

पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स जी.एस.टी. के भीतर भी रखा जा सकता है और इन पदार्थो को अभी जिस तरह से वेट से बाहर रखकर कर लगाया जाता है वैसा भी किया जा सकता है लेकिन फिलहाल इन्हें जी.एस.टी. से बाहर रखा जा रहा है . ये तो आपको पता ही होगा कि वर्तमान में पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स वेट से बाहर है और जिन कारणों से ये पदार्थ वेट से बाहर रखे गए है उन्ही कारणों से इन्हें जी.एस.टी. से भी बाहर रखा जा सकता है इसकी पूरी – पूरी संभावना है .

यहाँ ध्यान रखे कि केंद्र एवं राज्य दोनों ही अपने राजस्व का बहुत बड़ा भाग इन पदार्थो पर लगने वाले “सेंट्रल एक्साइज एवं वेट” से एकत्र करते है और यह इनके लिए बहुत ही सुखद स्तिथी है जिसे दोनों ही छोड़ना नहीं चाहते और ऐसे में यह होगा कि उद्योग एवं व्यापार को पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर दिए हुए कर का इनपुट नहीं मिलेगा और यह जी.एस.टी. आदर्श स्वरूप के साथ और भी खिलवाड़ होगा.

संविधान संशोधन विधेयक में भी पेट्रोलियम पदार्थों को जी.एस.टी. कौंसिल की सहमती से जी.एस.टी. में लेने की बात कही गई है लेकिन ऐसे संकेत है कि फिलहाल उन्हें जी.एस.टी.से बाहर रखा जाएगा अर्थात उन पर अभी की स्तिथी की तरह ही कर राज्य एवं केंद्र का कर लगता रहेगा.

nine. केंद्र क्यों जी.एस.टी. लगाने को आतुर है

केंद्र राज्यों के मुकाबले अधिक उत्सुक है जी.एस.टी. लगाने के लिए और तत्पर भी नजर आता है ऐसा कहा जाता है तो आइये देखे क्या इसमे भी कोई सच्चाई है या नहीं .

देखिये केंद्र को जी.एस.टी. के दौरान अभी अप्रत्यक्ष करों से जो वसूली हो रहे है उससे अधिक वसूली करेगा क्यों कि एक तो इस समय सेंट्रल एक्साइज 150.00 लाख रुपये से अधिक की सीमा पर लगता है लेकिन सी.जी.एस.टी. अब केवल 10.00 (या 15 लाख या 20 लाख ) से ऊपर ही लगाने लगेगा इस प्रकार यह a hundred and forty.00 लाख रुपये का अंतर एक बड़ी मात्र में डीलर्स को सी.जी.एस.टी. (केंद्र का जी.एस.टी.) के दायरे में लाएगा.

इसके अतिरिक्त इस समय सेंट्रल एक्साइज माल के निर्माण की स्तिथी तक ही लगता है जब कि सी.जी.एस.टी. बिक्री की अंतिम स्तिथी तक लगेगा और चाहे उपभोक्ता किसी भी राज्य में रहे केंद्र को तो सी.जी.एस.टी. मिलेगा ही और इससे भी केंद्र के राजस्व में वृद्धि होगी.

लेकिन राज्यों के बारे में आप यह नहीं कह सकते क्यों कि एक तो इस समय सेंट्रल एक्साइज का “कैस्केडिंग इफ़ेक्ट” (कर पर मिलने वाला कर ) जी.एस.टी. के दौरान समाप्त हो जाएगा इससे भी राज्यों के राजस्व में कमी आयेगी . इसके अतिरिक्त राज्य बहुत सी वस्तुओं पर 15 प्रतिशत की दर से कर लगा रहें है उन्हें अब लगभग eight प्रतिशत की दर से कर लगना पडेगा लेकिन जहाँ वे 5 प्रतिशत की दर से कर लगा रहे है वहां भी 8 प्रतिशत (संभावित) की दर से कर लगायेंगे तो अभी पता नहीं लग सकता कि वे लाभ की स्तिथी में रहेंगे या नुक्सान की.

केन्द्रीय बिक्री कर समाप्त हो जाएगा इस कारण से निर्माता राज्यों का राजस्व कम होगा और प्रवेश कर की समाप्ती होने से भी कुछ राज्यों को समस्या हो सकती है. इन राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, हरयाणा इत्यादि प्रमुख है

सभी राज्य वित्तीय रूप से राज्यों के मुकाबले और अधिक मजबूत केंद्र चाहते है ऐसा भी नहीं है अत: राज्यों की तरफ से जी.एस.टी. को लेकर उतनी उत्सुकता नहीं है जितनी केंद्र की तरफ से है और रही है .

राज्यों की विधान सभाओं में जब जी.एस.टी. संविधान संशोधन विधेयक पेश होगा तब राज्यों का रुख विशेष तौर पर निर्माता राज्यों का रुख और अधिक स्पष्ट होगा.

10. जी.एस.टी. एवं व्यापार एवं उद्योग

जी.एस.टी. वर्ष 2006 के बाद से ही केंद्र और राज्यों के बीच ही एक विवाद का विषय बना हुआ है और सरकारी स्तर पर व्यापार और उद्योग की इस बारे में क्या राय एवं उम्मीदे है इस बारे में कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया गया है . इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अभी तक राज्य एवं केंद्र ही इस कर के अंतिम स्वरूप के बारे में एकमत ही नहीं थे तो वे व्यापार एवं उद्योग की राय लेकर और भी असमंजस एवं विवाद में नहीं पड़ना चाहते है .

व्यापार एवं उद्योग के भी कई क्षेत्रो से जो बयान जी.एस.टी. को लेकर कभी –कभी आते है उनमे भी अधिकांशत; इस राय पर आधारित होते है कि जी.एस.टी. “एक एकल कर” है जबकि जी.एस.टी. केंद्र एवं राज्यों द्वारा एक ही व्यवहार पर दोनों द्वारा लगाया जाने वाला “दोहरा कर” है. व्यापर एवं उद्योग के लिए भी अभी से जी.एस.टी. के बारे में अध्ययन करना आवश्यक ताकि वे जी.एस.टी. के बारे में उद्योग एवं व्यापर की एक राय बना सके जिसे अंतिम रूप से जी.एस.टी. लगने से पूर्व सरकार को पेश कर सके.

जी.एस.टी. के लागू होने पर सबसे अधिक वेट डीलर्स प्रभावित होंगे क्यों कि उन्हें अब अब राज्य के कर के साथ केंद्र के कर के एकत्रीकरण एवं भुगतान की प्रक्रिया से गुजरना होगा और इसके अतिरिक्त 150.00 लाख रुपये तक का सेंट्रल एक्साइज की छूट लेने वाले निर्माता भी क्यों कि अब उन्हें यह सरंक्षण समाप्त हो जाएगा और बड़े उद्योगों के सामने प्रतिस्पर्धा में उनके लिए अस्तित्व का संकट भी पैदा हो सकता है.

eleven. उपभोक्ता और जी.एस.टी.

उपभोक्ताओं को जी.एस.टी. के बाद वस्तुएं सस्ती मिलेगी और सरकार को राजस्व भी ज्यादा मिलेगा तो एक सवाल उठता है कि ये दोनों आपस में विरोधी परिणाम एक साथ कैसे संभव है और दूसरी बात यह भी है कि कुछ विशेषज्ञों के अनुसार जी.एस.टी. के प्रारम्भिक काल में महगाई बढ़ सकती है तो इस प्रकार से अभी यह नहीं कहा जा सकता है कि जी.एस.टी. का उपभोक्ताओं पर क्या असर पडेगा.

लेकिन एक बात तो यह है कि इस समय जब भी उपभोक्ता कोई वस्तु खरीदते है तो उन्हें बिल में सिर्फ एक ही कर वेट के रूप में लगा हुआ नजर आता है लेकिन अब जब जी.एस.टी. लागू होगा चाहे वह 1 अप्रैल 2016 हो या इसके बाद कभी भी तो वे जो भी वस्तु खरीदेंगे उसके बिल पर एक की जगह दो टैक्स लगे हुए दिखेंगे तो उनकी प्रतिक्रया कानून निर्माताओं के प्रति नकारात्मक ही होगी. अभी भी वे सेंट्रल एक्साइज का भुगतान कई वस्तुओं पर करते है लेकिन वह लागत एवं कीमत में जुडा होता है और अंतिम उपभोक्ता को बिल में नजर नहीं आता है.

12. क्या जी.एस.टी. एक अप्रैल 2017 से लागू हो पायेगा

वर्ष 2006 में जब पहली बार जी.एस.टी. का जिक्र किया गया तब यह कहा गया था कि यह एक अप्रैल 2010 पूरे भारत में लागू कर दिया जाएगा तब से लेकर अभी तक यह बहुचर्चित नयी कर प्रणाली राज्यों एवं केंद्र के बीच एक विवाद का विषय बन कर रह गयी है और प्रारम्भ से ही जी.एस.टी. को लेकर यह प्रचरित किया जाता रहा है कि इस कर प्रणाली से ना सिर्फ राजस्व में वृद्धि होगी बल्कि उपभोक्ताओं को भी लाभ होगा . यों तो ये दोनों तथ्य अर्थात राजस्व में वृध्दि होना और उपभोक्ताओं को भी सस्ती वस्तुए मिलना आपस में विपरीत तथ्य है लेकिन फिर भी हम इस पर विश्वास कर ले तब फिर यह सवाल उठता है कि फिर जी.एस.टी. को लागू करने में देरी क्यों हो रही थी या है ?

जी.एस.टी. भारत में केवल एक कर ही नहीं है यह केंद्र और राज्यों के बीच कर लगाने के अधिकारों की एक राजनैतिक लड़ाई भी है और जी.एस.टी. में “राज्यों के कर लगाने के अधिकारों” की रक्षा राज्य केंद्र के साथ दोहरे कर के रूप में जी.एस.टी. का प्रस्ताव मनवा कर कर चुके है लेकिन अभी भी जी.एस.टी. पर कई मुद्दों पर राज्यों की अपनी आशंकाए है जो उनकी विधानसभाओं में जब जी.एस.टी. संविधान संशोधन विधेयक जाएगा तो और अधिक स्पष्ट रूप से उजागर होंगी.

संविधान संशोधन भी अभी लोकसभा और राज्यसभाओं में ही पारित हुआ है अब इसे कुल राज्यों के कम से कम आधी संख्या में राज्यों द्वारा इसको अनुमोदित करना अनिवार्य है . इसके अतिरिक्त यह भी तथ्य है कि यदि संसद के दोनों सदनों के साथ देश के आधे से अधिक राज्यों ने संविधान संशोधन का अनुमोदन कर दिया तो संविधान संशोधन तो पारित हो जाएगा लेकिन जो राज्य असहमत होंगे उन्हें जी.एस.टी. लगाने के लिए कैसे तैयार किया जाएगा यह भी एक विचारणीय प्रश्न है क्यों कि वेट की तरह जी.एस.टी. तो पूरे भारत में अलग अलग समय पर नहीं लगाया जा सकता है और इसे पूरे देश में एक साथ ही लगाना होगा और यह भी देखना होगा कि क्या केंद्र व्यवहारिक रूप से असहमत राज्यों पर बिना उनकी सहमती के उन्हें जी.एस.टी. के दायरे में भी ले पायेगा या नहीं क्यों कि जी.एस.टी. का भारत में अर्थ केवल केंद्र का जी.एस.टी. ही नहीं है बल्कि इसका दूसरा हिस्सा राज्यों के एस.जी.एस.टी. कानून के रूप में अपनी विधान सभाओं में पारित करवाना है .

इसलिए जो समय बचा है उसमे तो जी.एस.टी. लागू हो जाए ऐसा संभव नहीं लगता है और इसी कारण से हम कह सकते है कि “व्यवहारिक रूप से सब कुछ ठीक ठाक रहा” अर्थात कानून निर्माताओं के पक्ष में रहा तो 1 अप्रैल 2017 तो नहीं हम कह सकते है कि 1 अप्रैल 2018 जी.एस.टी. लागू करने की संभावित तिथी हो सकती है.

 

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